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रिट्टणेमिचरित
घत्ता
(जइ) एतें, वासरे सत्तमए जइ रिउ. ण णेमि जम-सासणे । तो जाला-सय-पज्जलिए दुजोहण चडमि हुवासणे ॥
... [२] महु भाइ सहोयरु वहु-गुणददु जउ-भवणे पुरोयणु तेहिं दद्दु दुम्मइहिं विहंसिय-खंडवेहिं तं पुव्व-वइरु सहुं पंडवेहिं णीसरिउ णराहिदु तहिं जि काले रिसि-आसमि वसिउ वणंतराले मंतेहिं सपूरहिं अहवगेहिं हवि-होम-महाउह-होमणेहिं आराहिय किच्च महा-पसिद्ध चउवीसह वरिसहं कह-वि सिद्ध आयहे चुक्कंति ण पंडु-जाय महि भुंजे स-सायर कुरुव-राय तं वइयरु कलह-पियाररण तव-तणयहो अक्खिउ णारएण रक्खंति जइ-वि हरि-हर-विरिंच णिवडेसइ सत्तम-दिवसे किच्च
__धत्ता एम कहेप्पिणु पंडवहं गउ कहिमि महारिसिं णारउ । ता चितिउ धम्म-सुएण मणे दस-लक्स्वणु धम्मु भडारउ ॥
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थिउ धम्म-समाहिहिं धम्म-पुत्तु धर-धीरु धराधर-धीर-धीरु जय-सिरि-वर-रामालिंगियंगु णासग्गे चडाविय-उहय-णेत्त अहो धम्म-भडारा करे परित्त तुहुं थुव्वहि सवहिं सासणेहिं तुहुं थुव्वहि सुरेहिं हुवासणेहिं
णं रिसि तव-संजम-णियम-जुत्तु पडिमल्ल-महल्लेक्कल्ल-वीरू दूरुज्झिय-दाइय-पिसुण-संगु णियमेक्क-परायणु झाण-मेत्त सग्गापवग्ग-सुहगइणिमित्त रवि-पवण-वरुण-कमलासणेहि
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