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सत्तावीसमो संधि
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घत्ता
गय गयउरु दुम्मणु कुरुव-वलु महियले विसटु दुजस-कमलु । वणे तव-सुउ सहुँ भायरेहिं थिउ णिय-जसु जे सई भूसणउं किड ॥
इय रिट्ठणेमिचरिए धवलासिय सयंभुव-कए
. छवीसमो सग्गो ।
सत्तावीसमा संधि वज्ज-णिहोडणु तडि-वडणु गिरि-पाहण वरिसेसइ । भुवणे भवंति भवित्ति जिह कहिं पंडव किच्च गवेसइ ॥
[१] जं णरेण णियत्तिउ कुरु-णरिंदु दव-दइदु व संठिउ महिहरिंदु हरि-णहर-पहर-विहुरिउ करिंदु खगवइ-झड-झंपिउ विसहरिंदु णउं भुंजइ णउं अत्थाणे ठाइ णउ कंदुय-कीलए कहि-मि जाइ णउं माणइ मणहर-कामिणीउं धयरट्ठ-महागय-गामिणीउं ण विलेवणु णउं आहरणु लेइ णउ दाइय-चित्तें णिंद एइ देवाविउ पडहउ णिरवसेसे कुरु-जंगले तहिं अप्पणए देसे जइ करइ को-वि वइरिहे विणासु तो दिज्जइ वसुमइ-अश्रु तासु तहिं काले कणउ कणयाणुराउ हउं मारमि एम भणंतु आउ ।
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