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________________ १०८ रिडणेमिचरिउ [१४] रणु आढत्तु खगाहिव-पत्थेहिं वावरंति ते दिब्वेहिं अत्थेहिं जाई जाइं चित्तरहु विसज्जइ ताई ताई णरु सरेण परज्जइ तरुवरु विणिवारिउ अग्गेहिं अग्गेयई वारुणेहि अणेणहिं वारुणाई वायवेहिं णिसुमइ वायवाई गिरिवरेहिं णिरुभइ गिरिवर वज्जासणिहिं वियारइ तामसाई तावणेहिं णिवारइ गारुडेहिं उरगाई विहंसइ अवरेहि-मि अवराई विणासइ जुझिउ ताम जाम किउ णिप्पहु पाएहिं पडिउ सुरिंद-समप्पडु पणविउ तेण विओयर-धारउ(?भायरु) तुहुं महु गुरु हउं सीसु तुहारउ ८ घत्ता दुज्जोहणु पावें छाइयउ ते गई समरंगणे चप्पियउ तउ वसणावेरखए आइयउ । एहु एवहिं तुम्ह समप्पियउ ॥ ९ तो सिर-सिहरे चडाविय हत्थे , कुरुव-राउ जय-कारिउ पत्थें जं णिज्जंतु णियत्तिउ पाणउ ढोइउ रहु सूर-रह-समाणउ. चडेवि णियच्छिउ कउरव-राणउ . एहु अवसरु महु को पंजाणउ(!) . पट्टवएवा जे जम-सासणु ताहं समाणु कवणु एक्कासणु ता गिब्वाण-महीहर-धीरें .. सर-सोवाण-पंति किय वीरें । ओयारिउ दुजोहणु राणउ . णिउ भायरहं पासे विदाणउ पुच्छिउ तव-सुएण किं दुक्खइ कुरुव-णरिंदु णरिंदहो अक्खड् तुह पायंतरि जउ हउं आयउ देहि दुक्खु तउ कह-वि ण माइउ ८ भारिउ सव्वु अंगु परमत्थें जं णिज्जंतु णियत्तिउ पत्थे तो दूसल भाणुवइ सुजोहणु तिण्णि-वि पट्टवियई णिय-साहणु । 15.3b संजाण Jain Education International For Private & Personal Use Only ... Wawaw.jainelibrary.org
SR No.001427
Book TitleRitthnemichariyam Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages220
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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