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________________ १०४ वावरं ति पहरण-संघाए हिं पट्टिस-फलिह-मुसल-गय- घाए हिं भलिहले (?कलिहेर्हि) भिंडिवाल - करवालेहिं सवल-झसर-सत्ति-सरजालेहिं हुलि-हुल-मुसल-मुसुंटि-कुढारेहिं तो गंध गंधव्वत्थई जे गरबइ रण-धुर घरेवि थिय कुरु-गाहु वलिउ चित्तंगयहो दुण्यवंतु समुण्णय- माणउ पवर - भुयंग - केउ गय-करयलु पेक्खंतहं किव कण्ण-क - कलिंग हं रण-भर-धुर- घरणेक्क-समत्थहं दहं भीरु - मंभी सह भूगोयर - खेयर - परमीसहं तो गंधवें णिरु णिप्पसरे चूरिउ रहवरु छिण्णु महद्भउ पेक्त दोण - पियामहहं आसत्थाम- दाण- गंगेयहं माणा - महिंदहं किवि - कियत्रम् महं णिउ णरas णरवइहिं नियंतह 8. 5a क चिलयह गुम्फंती. Jain Education International अवरेहि-मि वहु-विहेहिं पयारेहिं मुक्कई मोहण - गहण - समत्थई धत्ता रिट्टणेमिचरिउ ते सयल-वि णवर णिरत्थ किय । णं 'मत्त - इंदु महा - गयो || किव कण्ण-विकण्ण-जयद्दहहं । विहवल - भूरी सव - राहेयहं || [<] [ ७ ] थक्कु एक दुज्जोहण - राणउ वाहिउ रहवरु पसरिय-कलयलु जाउ जुज्झु कुरुवइ - चित्तंगहं दिवे दिवे णिदिय-वण्णिय- पत्थहं सुरवर-सुंदरि - दिण्णासीसहं दोणायरिय-घणंजय -सीसहं कह - वि कह - वि रणे लद्वावसरें कुरुव-राउ अंसुएण निवद्भर घत्ता दूसासण- सिंधुवइ सुसम्महं सरवर-1 र-नियरु निरंतरु दितह For Private & Personal Use Only ८ ४ www.jainelibrary.org
SR No.001427
Book TitleRitthnemichariyam Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages220
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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