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छवीसमो संधि
१०३ णाय पुण्णाय णग्गोह सत्तच्छया मड्ड मालार तालूर तामिंजुया सल्लई सेल्लु सल्लायई हिंगुणा दालिमी देवदारू करंजज्जुणा कुंद मंदार सिंदूर सिंदी सणी संवली राजभुंजामली खिखिणी वंजु लंकाल कारंट कोसवया जंबु जंवीर खज्जर लिवंवया
धत्ता किर वरिसई पंच कहि-मि गयहो ण णावइ वत्त धणंजयहो । पहु-जमल-विओयर तहंव तिय ण जियंति महारी णिएवि सिय ॥९
[५] रिसि-वयणेण कुविउ चित्तंगउ णं गयवर-गंधेण महागउ को पंडवहं मडप्फरु भंजइ को विसेण णिय-णयणई अंजइ को चित्त-वणु महारउ छिंदइ को किर वज्जु अवज्जे भिंदइ को कियंत-दंतंतरे अच्छइ को दिट्ठीविस-दिट्ठि णियच्छइ एम भणेवि परिवढिय-गवें णिय-वलु आणप्पइ गंघव्वें धाइउ पारावार-सम-प्पहु दिणयर-रहवर-रंध-महारहु पलय-पओहराह-तंवेरम चोयहिं तुंग-तरंग-तुरं गम भिडियई वलई वे-वि समरंगणे सरहसु णारउ णडइ णहंगणे
घत्ता
. . हय हएहिं परज्जिय भडेहिं भड रह रहेहि गइंदेहि हत्थि-हड । किउ पाराउट्टउ कुरुव-बलु णं पवण-गलत्थिउ उवहि-जलु ॥ ९
कुरुवले भज्जमाणे स-पियामह थिय किव-कण्ण-कलिंग-जयद्दह भूरीसव-भव(ग)यत्त महावल चित्तसेणे-दूसासण-सउवल सल्ल-विसल्ल-दाण-दोणायण, अवर वि णरवर सरण-परायण . धाइय खत्त मुएवि खगिदहा णं पमत्त मायंग गयंदहो
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