________________
१००
रिट्ठणेमिचरिउ
४
तो वासवेण हक्कारियउ रहणेउर-पुरे पइसारियउ जुयराय-पटु वज्झइ गरहा घोसिउ जिह पुत्त पुरंदरहो दिज्जइ किरीडु सव्वाहरणु तोणीरु सिलीमुहु कवउ धणु घरे घरे वीभच्छहों तणिय कह xx xx xx घरे घरे घरिणिउ आयल्लियउ कुसुमाउह-आउह-सल्लियउ णर-विरहाणल-जाला-हयउ दस कामावत्थंतर गयउ झायंति झाण-तग्गय-मणउ परियड्ढइ अंगहो रणरणउ
घत्ता अज्जुणु दिट्ठि ण देइ कुल-वहु-कामिणि-कण्णहं । अच्छइ दोवइ चित्ते को अवसरु तहि अण्णहं ।। ८
तो साहरणेण स-णेउरेण णरु सप्पइ सक्कतेउरेण अम्हाणोगण्णेवि सुरय-सुहु संवच्छरु होसहि संदु तुहु तीमइहिं एम पुवुत्तएण णव कूडइं परिअच्चतएण जिण-वंदणहत्ति करंतरण विण्णि-वि सेटिउ पेक्खतएण संवच्छर पत्थे पंच णिय जहिं भायर तेत्तहिं जत्त किय रणरणउं करेवि महंत-पुरे रहे चडिउ सुतारु करेवि धुरे चाओवएस-उवसंजयहो सिस्साइ-समाण धणंजयहो । चित्तंगय-चित्त-विचित्तरह वणे पंडव दिट्ठ किलंत. सह
धत्ता जेटेहिं किउ पणिवाउ जमलेहिं णमिउ पचंडेहिं । वहं साइउ दिण्णु णरेण सई भुवदंडेहिं ।।
'दणेमिचरिए धवलासिय-सयंभुव-कए
पणवीसमा सग्गो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org