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पणवींसमो संधि
घणु-कारणे वहु-मच्छर-भरिय णाराएहिं तोमर-सीरिएहिं वावल्लेहिं भल्लेहिं भीसणेहि पहरंत वलद्धर दुरिस णासंति सराहय मत्त गय अवरइ-मि पणट्टई वणयरई अग्गेय-सरेहिं विमुक्किएहिं पसमिज्जइ हुयवहु वारणेहि
[५] धाणुक्क-घणंजय उत्थरिय कण्णियहि खुरुप्पेहिं ईरिएहिं अवरेहि मि अणेएहि णीसणेहिं जय-लच्छि-लुद्ध वद्धामरिस मय-णइ-कद्दम-खुप्पंत-पय सवरज्जुण-मम्गण-जज्जरई लग्गइ दवग्गि वणे दुक्किएहिं ताइ-मि पवणत्थेहिं दारुणेहि
घत्ता
वण-रुहिरारुण वे-वि पाउसे पज्झरमाण
एक्कु-वि वसुह ण पावइ । धाउ महीहरु णावइ ॥
[६]
तो पप्फुल्लिय मुह-कंजएण धणु धरणिहिं चित्तु धणंजएण भुय-दंडेहिं तुलिउ किराउ रणे परितुट्ट स-वासक सुर गयणे अच्छोडइ महियले जाम ण-वि तो दाविय दिब्वे दिब्व-छवि सोलह.आहरण विहूसियउ विज्जाहर-रूउ पगासियउ अहो अजुण तुझु पसण्णु हउं लइ ओसहि भूसहि अप्पणउं संजीवणि रुंधणि सम-करणि दप्पहरण-पहरण-अवहरणि वयराहिउ पुणु-वि पुणु-वि चवइ वरु मग्गि मम्गि जो संभवइ णीसरिय वाय कुरु-णंदणहो सारच्छु करहि महु संदणहो
घत्ता
तेण वि तं पडिवण्णु णिउ अब्भत्थेवि पत्थु
विज्जा-विक्कम-सारें। दाहिण-सेढि सुतारें ॥
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