________________
चउत्रीसमो संधि
तव-गंदण अत्थु अणेय-भेउ वह-बंध-दुक्ख-भय-सोय-हेउ असु-हरणई चमरिहे चामराई वग्धाइहिं अइणई कसमराई मणि फणिहिं विसाणइ कुंजराहं मंसई अवि-अइवहं वणयराहं तणु-कंचुय कुम्महं अट्ठियाई __मय-थाणई मयहं परिट्ठियाई जं मार भयावह पुत्तकेस(?) अण्णहं अण्णण्ण-सरीर-वेस
आएण गएण विणासु जेण ण करेवउ हरिसु विसाउ तेण वहु-भेय करेप्पिणु धम्म-सवण सायण्हए कहि-मि पयट्ट सवण परिचत्तेवि बंधव सयण सव्व गय पंडव वणहो महागय व्व
घत्ता
तहिं गिरि-गहणे विओयरेण किम्मीर-जडासुर णिट्ठविय । वसइ ण वसइ कयंतउरि णं वे-वि णिहाला पट्टविय ॥
९.
सयभिंग-वारिसेगतराले हिमवंत-गंधमायण-खजाले वयरी-वणे कामिअ-वणे वि चिते दइय-वणे वसेप्पिणु पुणु विचित्ते थिय पंडव कालंजरए रण्णे तल-ताली-नरल-तमाल-छण्णे जहिं णहयल-सच्छई पाणियाई णं अमियई सग्गहो आणियाई कप्पयरु-समप्पह जेत्थु रुक्ख णउ वरिस-सए वि करंति भुक्ख जहिं सीयल-विउल-लयाहराइं सुर-भवणइं णाई मणोहराई
पत्ता
जं मुणि-गण-उवसेवियउ तं वणु इच्छिय-दिण्ण-फलु
जहिं जणु सामण्णु ण पइसरइ । अजरामर-थाणहो अव(?णु)हरइ ॥
७.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org