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कुरु-कवड - दुरोयर-हरिय-रज्जु
सहु भाइहिं किर वीसमइ जाम अणवज्जु विवज्जिय-राय-दोसु तत्र-चरण- तात्र-ताविय सरीरु दुट्ठट्ठ-कम्म णिट्टण हेउ सो वंदिउ णयणाणंदणेहिं
पय पक्खालणु तेहि किउ जेहिं विजेवि घत्तियउ
धत्ता
रिसि - कुलु णिएवि रवि-किरण-तत्त मई पावें काई जियंतएण रिसि-भोयणु णउ संपडइ जासु गुरु-दत्त-वयणे उच्छलिय वाय दरिसणु जे तुहारउ परम- भोज्जु अहो पत्थव अत्थु अणत्थ- भूउ पहिलउं जे त्रिटप्पइ दुक्खु दुक्खु 'जइ णासइ तो-त्रि महंतु डाहु
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कालंजर काणण-गमण-सज्जु
संपत्तु महारिसिं-संधु ताम अ-परिग्गहु काय - किलेस-सेसु
वय-दुधर धराधर - धरण - धीरु
संसार समुदुत्तरण- सेउ पडवाड़िए पंडु णंदणेहि
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दविण - दुमहो एत्तउ फलु जइ पण दिण्णु जइ भुत्तण-नि
धत्ता
रिट्ठ णेमि चरिंड
सवहं परम - महारिसिहि । मयरउ वलि जिह दस - दिसिंहिं ॥ ९
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जं घम्महो देवहो गुरु-कुलहो । तो अग्गिहे चोरहो राउलहो ||
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चितइ णिय-हियए अजायसत्त धण-हीणें दीणे होतएण वरि मरणु ण जीविउ सहलु तासु कि परम-विसायहो जाहिं राय पंडव पेक्खंतहं कहो ण चोज्जु किं आएं जाएं वरिण हूउ त्रीयहुं रक्खेवइ मणु स-कंखु भणु तिहि - मि पयारेहिं कवणु लाहु ८
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