SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रिट्टणेमिचरिउ ८८ घत्ता वाह-जलोल्लिय-लोयणिय पुत्तम्मणअंची कांति गय । एंति विहाइय पंडवेहि पंचहिं परमेट्टिहिं णाई दय ॥ ९ - [१०] णिय-तणय णिएप्ष्णुि भणइ कोंति गरुया-वि धणुज्झिय लहुय होंति अहो हय-विहि णिग्गुण णिव्विसेस जे जगे विसिट्ठ ते तुज्झ देस तिहुवणे पहिलारी जी(१ली)ह जाहं सित्थु वि वडिगउ ण देहि ताहं उज्जुल्ल(?) हरेप्पिणु सुपुरिसाहं धणु देहि अ-मग्गिउ कुपुरिसाहं । अह तुज्झु ण दोसु वि हय विहाय महु दोसु णिरासहे जासु जाय परिपुण्ण पंडु-मदि वि कयत्थ णउ दिट्ट जेहिं एक्क वि अवत्थ हउं पाविणि पावहो तणिय खाणि मई जेही होउ म खत्तियाणि । ण-वि सक्कवि ?मि) दुक्खई धरिवि देहे वरि अच्छिय विउरहो तणए गेहे ८ धत्ता कोंति रुवंती धीरवेवि भउ उप्पाएवि कउरवहं आउच्छिवि परियणु पउर-पय । पंडव पंचालिए समर गय ॥ [११] गय कुति-पुत्त दोवइ-सणाह सो को वि ण जेण ण मुक्क धाह उम्माहउ सव्वहो जणहो जाम धयरट्टे पुच्छिउ विउरु ताम कहिं पंडु-पुत्त 'णिक्कलिय केम किं मिग जिह किं पंचमुह जेम अच्चंघहो अक्स्वइ विउरु वत्त सुणु णरवइ जिह कय तेहिं जत्त ओगुंठि करेप्पिणु गउ गरिंदु मा दिट्टि हणेसइ कुरुव-बिंदु भामेवि गयासणि भीमु जाइ महु भाय-सयहो किं को वि थाइ. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001427
Book TitleRitthnemichariyam Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages220
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy