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चउवीसमो संधि
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[८] जं एम पयंपिउ पवण-जाउ तं धाइउ कुरुवइ कुरु-सहाउ थिय वारा णरवइ णिरवसेस दूसासणु तो वि ण मुयइ केस परिओसिउ कुरुवइ सउणि कण्णु । गउ रज्जु अज्जु पभणइ विअण्णु धयरट्ट-इट्ट गंधारि-पुत्त
किं उत्तम पुरिसहं एउ जुत्तु ४ अवहेरि करेवि सहोयरासु पेक्खतहो णरहो विओयरासु वारंतहं णयणाणंदणाहं
किव-विउर-दोण-सरि-णंदणाहं पंचालिहे णिवसणु कणय-वण्णु अच्छोडिउ खणे उप्पण्णु अण्णु जुवराउ पसारइ जहिं जे हत्थु उप्पज्जइ तर्हि जे णवल्लु वत्थु ८ जं रुप्पिण-हाणु वउत्थु आसि तहो फलेण विणिम्मिय सिचयरासि
धत्ता
सुट्ठ विलक्खीहूवएण वत्थ-सहास-पदरिसणिय
अहिहवेवि ण सक्किय दुमय-सुय । सुय–देवय णं पच्चक्ख हुय ॥ १०
जं कुरुव-कुमारेहिं किउ अणाउ तं चउ दिसि धिद्धिकार जाउ उप्पाय समुट्ठिय पडिय उक्क गोमायव-सिव फेक्कार मुक्क पंचालि पसंसिय पत्थिवेहि गंगेय-विउर-भग्ग(?)-किवेहि धयरट्ट लग्गु सयमेव पाए लइ मग्गे मग्गे किं देमि माए ४ णर-णारि पवोल्लिय णिसुणि ताय उद्दामहि पंच-वि पंडु-जाय तो तेण विसजिय गय तुरंत केसग्गह कोवें विष्फुरंत कुरु-पय-णिमित्त-णिबद्ध-वेणि गय विउर-णिहेलणु जण्णसेणि . आउच्छिय अज्जुण जणणि ताए. दिट्ठिय महु होज्जहि जामि माए ८
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