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चउवीसमो संधि
८५ णं गरुडे पत्रर-भुवंग-घरिणि णं सीह-किसोरें लक्ष्य हरिणि ४ णिय तेत्तहे जेत्तहे वसण-भुत्त सहुँ भाइहिं अच्छइ धम्म-पुत्तु जहिं कुरुवइ कण्णु कलिंगु सउणि गंगेउ दोणु किउ विउरु सउणि पेक्खंतहं सब्वहं जय-मणेण केस-गहु किट दूसासणेण दुज्जसु विद्वत्तु णं कउरवाहं णं जसु विस्थारिउ पंडवाहं
पत्ता
तं पेक्खेवि केस-ग्गहणु जणु कंपइ जंपइ उत्तसइ । भीम-कयंते कुद्रएण भणु एवहिं गयउरु कहिं वसइ ।। ९
[५] तहिं अवसरे पभणइ जण्णसेणि कुरु-संढहं तुम्हहं तुट्ट वेणि थिउ एवहिं दूसंथवउ कज्जु कुरु-वंसें सहुँ उद्घ टटु रज्जु अहो ससुरहो तुम्हहुं णाहिं वुद्धि अण्णाउ करेंवि कहिं लहहो सुद्धि ४ अहो कुरु-गुरु अहो भाईरहेय किं खत्तिय-कुले आयार एय अहो अजुण णामें विहिय वाह कि अण्णे केण त्रि विद्ध राह मई महुएं महुयर-किय-वमाल किं कासु-वि अण्णहो घित्त माल ओसारेवि सुर-बलु पहरणड्डु
कि खंडव-वणु अण्णेण दड्दु ८ अहो भीम सरिजहि विहुर-काले परिरक्वहि तो वि ण भड-बमाले
धत्ता
अहवइ तुम्हहं दोसु ण-वि त्रिणु सिहंडि-धज्जुणेहिं
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महु दोसु जाहे णउ वधु-जणु । छोडावि(१वइ) को केसग्गहणु ॥ [६]
जोइउ पहु-बयणु विओयरेण जें पलयहो णिजइ वइरि-साथु
तो वग-हिडिंव-जम-गोयरेण उच्छल्लु भडारा धम्म हत्थु
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