________________
८४
रिट्ठणेमिचरिउ
रत्तुप्पल-कोमल-कमयलाई णं तणु-सिरि-अच्चण-सयदलाई उहओरु कडियालंव-लंभ णं मयण-तोरण(ह)-दार-थंभ गय-गमणी रमणहो रोम-राइ वम्मीयहो कसण-भुवंगि णाई
घत्ता ति-वलि(य)उ मज्झे परिट्ठिउ दूसासणु पेक्खइ दोवइहे । णं णिम्मवेवि चहुष्ट्रियउ अंगुलियउ तिण्णि पयावइहे ॥ ९
[३] कसणाणण सिहिण सुवण्ण-वण्ण णं कणय-कलस कंदोट-छण्ण बाहु-लयउ सामल-गत्तियाउ इसीसि करयलारत्तियाउ कंकेल्लि-पल्लवायवियाउ णं कुवलय-मालउ लंवियाउ कइ-सेण व सोहइ अंगएहिं सुग्गीव-हगुव-नीलंगएंहिं छणयंद-विव-पडिविव-वयण मयरद्धय-वाण-समाणणयण णीलुप्पल-दल-णिह कुडिल-केस णं मिलिय कसण-सिसु-फणि-बिसेस णर-णारि पकोक्किय एहि एहि धरे अम्हहं दासित्तणु करेहि जिय स-धर स-कोस स-परियणा वि सहएव-णउल-भीमज्जुणा वि
घत्ता
तो बोलिज्जइ दोवइए, हउं एकहो दासि धणंजयहो। माणुस-वेसें जम-णयरि तुम्हहो धयरट्ठय सुयहो ॥
[४] तं णिसुणेवि गंधारी-सुएण कंपाविय केलि व मारुएण कडूटिय णर-गारि धणुधरेण णं णलिणि विरोलिय सिंधुरेण णं णव-लय हल्लिय वाणरेण णं ससि-पह जगडिय जलहरेण
www.jainelibrary.org
For Private & Personal Use Only
Jain Education International