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रिटणेमिचरित
धत्ता
लंकाहिउ पर-तिय गमणेण जूएं णलु चाएण वलि ।। अवरेहि-मि अवर विणट्ठा णंदहु वे-वि म करहु कलि ॥
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[१४] थक्कु णिवारिज्जंतु ण ताएं मंडिउ पिडु पडिवारउ राएं कुरु-जंगल-देसद्धहो णामें चित्त दुरोयर सउणिय मामें महि हारंतु णउलु हारतउ पुणु सहएउ पत्थु ओडुतउ भीमसेणु पुणु पुणु अप्पाणउ दुंदुहि धरेवि थक्कु कुरु-राणउ दोच्छिउ सउवलेण अविलक्खण वसण-वसंगय कुपहु अ-लक्षण कट्टहं कट्ठ जुहिट्ठिल राणा करि अप्पउ वाहिरउ अयाणा कवणु जूउ विणु दम(?विणे' रम्मइ जइ ण किंपि तो उट्टेवि गम्मइ तावहिं अंतेउरु अद्दुतउ भीमहो तणउं तंपि हारतउ
घत्ता
पंचालि पहाण करेवि सइंभुएहिं दुरोयर लेवि
अन्जुण-पिययणु अड्डविउ । विउरें जूड जे छड्डविउ ॥
इय रिट्ठणेमिचरिए धवलासिय-सयंभुव-कए
तेवीसमो सग्गो ॥२३
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