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रिट्ठणेमिचरिउ
[१०] जं वलु सव्वहो वणयर-विंदहो तं एकहो संभवइ गइंदहो जो मायंद-सहासहं विक्कमु तं एक्कहो केसरिहे परक्कम सय-केसरिहिं परक्कमु जेत्तिउ अट्ठावयहो होइ वलु तेत्तिउ जं सहसहो अट्ठावय-विंदहो तं परमागमे वलु वलहद्दहो जं वलएवहु विहिं तं एक्कहो । परिपालिय-तिखंड-महि चक्कहो विउणउं तित्थु सयल-चक्कवइहे सहस-गुणाहिउ सग्गाहिवइहे सक्क-सयहं जं तं जग-णाहहो तित्थयरहो वर-केवल-वाहहो सो परमेसरु जाहं परिग्गहे सुरवइ ताहं समप्पहि विग्गहे ।
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घत्ता
तं णिसुणेवि इंदु णियत्तु गय णर-णारायण वे-वि
सहुं णिय-वलेण सुहासणेण । खंडउ दिण्णु (?दड्डु) हुवासणेण ।। ९
[११] कणयपत्थु गउ पत्थु स-संदणु दारावइ पइसरिउ जणद्दणु णिरुवम-रिद्वि किरीडिहे जाई दोवइ पंच पुत्त पविआई एक्कु पुत्तु अहिवण्णु सुहद्दहे कणयमाल उप्पज्जइ णंदहे पंडव-गाहहो महि भुजंतहो णय-विक्कम-उवाय-जुजं तहो दियवर-देव-भोय-पालंतहो वसुमइ-कामधेणु दोहंतहो जाय रिद्धि सुर-रिद्धि समप्पह वासव-सह-संकास महा-सह एक्कहिं दिवसे समुण्णय-माणउ । अप्पाहिउ दुज्जोहण-राणउ जहिं जलु तर्हि परिचिंतइ पंगणु जहिं थलु तहिं जाणइ गयणंगणु भीमें हसिउ विलक्खीहूयउ । मणेण विरुद्ध णाइं जम-दूवउ गउ णिय-घरु कोग्गि-झुलुकिउ अण्णहि दिवसे जुहिट्ठिलु कोक्किंठ
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