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तेवीसमो संधि
[८] जं उल्हवेविं ण सक्किउ खंडउ पुणु पडिवारउ वेढिउ पंडर विउणउ तिउणउ वरिसिउ पाणिउ दइवें णाई णहंगणु काणिउ तहिं अवसरि पधुणिय-सिरिवच्छे पेसिउ वायवत्थु वीभच्छे उड्डावियई समुण्णय-माणई पहरण-वाहण-चिंध-विमाणइं ४ जलहर-जालई झत्ति पणट्टई सुरवर-विंदई गर-सर-तट्टई के-वि के-वि गिब्वाण पलज्जिय वलेवि महीहर तेहिं विसज्जिय' .. छिण्ण धणंजएण अविओले सुर-जय-लच्छि-करग्गह-लोले ते-वि णिरंतर पूरेवि वाणेहि कह-वि कह-वि णउ मेल्लिय पाणेहिं
घत्ता एक्कु-वि : सर-जालु अणंतु अण्णु वि दूसह पवण-धुणि । गय णासेवि सुरवर-सत्थु - जहिण सुणिज्जइ पत्थ-झुणि ॥ ९
[९] कहिउ सुरेंदहो सुरवर-सत्थे खंडउ दइदु भडारा पत्थें एकहो अमर-महाहवे भग्गा पाण लएवि उम्मग्गे विलग्गा तं णिसुणेवि सण्णदु पुरंदरे टाणहो चलिउ णाई गिरि मंदरे चडिउ मयंवुवाहे अइरावए सीहु व पन्झरंत-कुल-पावए तेण चलंने चलियासेस-वि चउविह देव-णिकाय विसेस.वि साहणे समरे महाहवे लग्गर दइवी वाणि समुट्ठिय अग्गए गंदउ सग्गु पमायहि भंडणु संपहारु सव्वहो उम्मंडणु वलु पच्चामुहु अविणय-गारा विग्गहु तुह असमाणु भडारा
घत्ता
जहिं णर-णारायण-तित्थु दुक्कर सक्किज्जइ सक्क
जमलीहोसइ तित्थयरु । वद्वेवि गरुयउ समर-भरु ॥
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