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रिट्टणेमिचरिउ
पभणइ सव्वसाई अहो दियवर दिव्व तुरंगम दिब्बु ण संदणु तो तें दिण्णइं दिव्वई अत्थई घणु गंडीउ अमोह महासर
धणु णउ दिव्वु ण दिव्व महासर आयामिज्जइ किह संकंदणु जाइं सुरासुर जिणेवि समत्थई रहु कइ लंछणु दुज्जय हयवर
घत्ता
अग्गेयई अक्खय-तोण आयइं दिण्णइं पंडवहो । गोविंदहो गय सरहंग होहु भरक्खम खंडवहो ।।
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[३] अत्थई लहेवि हुवासणु मुच्चइ पुणु परमत्थे पत्थें वुच्चइ करे गंडीउ पासे छुडु केसउ चरु दवग्गि कहिं रक्खइ वासउ तिहुयणु जइ-वि थाइ संघाएं किज्जइ जइ-वि रक्ख जमराएं जइ-वि पयावइ धरइ स-हत्थे खंडउ डहनि तो-वि परमत्थं इच्छए चरण लग्गु दावाणलु णं थिउ सुर-गिरि कणय-समुज्जलु उप्परि धूमावलिवि(?उ) विसालउ मेरु-सिहरि णं जलहर-मालउ जलिय-जलण-जालोलिं समाहय पक्खि पडति धंति वण-सावय व(ध)णिय घणंजय-सर स-सरासण क्लेवि वलेवि णिवडंति हुवासण
धत्ता
हरि संघइ विधइ पत्थु जलणु झुलुक्केहिं अल्लियइ । भुक्खियह कियंतहं ताहं मझे परिट्ठिउ को जियइ ॥
... - ‘कहिं जि डझमाणया किरीड-मग्गणाहया
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फर्णिदया पलाणया दवाणलाणणं गया
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