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रिटुमिचरिउ
करि-लक्खइं. तुरय-अक्खोहणीउ अ-पमाणई माहिस-गोहणाई वहु-रुप्पिय-कंचण-भायणाई असरालई धण्णइं पुंजियाई
तरु-खंभे दिसाउ जे दामणीउ उद्दामई वसुमइ-दोहणाई वर-सिज्जई जम-पच्छायणाई इह जम्मे वि जाई अणज्जियाई ८
धत्ता
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चउदह-रयणई जासु 'छक्खंड वसुंधरि भुजइ । अजुण-रिद्धि णिएवि चक्कवइ-वि दुक्कर पुज्जइ ।।
[१२] पंचालहं कुरुवहं जायवाह पडिवत्ति जहारुह करेवि ताहं पट्टविउ असेसु णरिंद-चक्कु एक्कल्लउ पर गोविंदु थक्कु । सह पत्थे पट्टणे कणयपत्थे परिओसु जाउ णहे अमर-सत्थे तहि अवसरे जहिं णेरवर मुरारि सई आइय विज्जाहरि कुमारि ४ णामेण णंद वहु-साहणेण रह-तुरय-दुरय-णर-वाहणेण वहु-कोसे वहु-परिरक्वणेण धण-कणंय-समिरे परियणेण सोहग्गे रूवे जोवणेण लायण्णे लढि-लडहत्तण कुल-सीले विणएं णिय-गुणेण संपण्ण कण्ण स वि अजुणेण ८
धत्ता परिणिय जाउ विवाहु जय-मंगल-तूर-णिघोसें । रज्जु सई भुजंतु थिउ सव्वसाइ परिओसें ॥ ९
"इय रिट्ठणेमिचरिए धवलासियसयंभुवकए ..
, वात्रीसमा सग्गो ॥ २२ ।
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