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________________ ७४ रिटुमिचरिउ करि-लक्खइं. तुरय-अक्खोहणीउ अ-पमाणई माहिस-गोहणाई वहु-रुप्पिय-कंचण-भायणाई असरालई धण्णइं पुंजियाई तरु-खंभे दिसाउ जे दामणीउ उद्दामई वसुमइ-दोहणाई वर-सिज्जई जम-पच्छायणाई इह जम्मे वि जाई अणज्जियाई ८ धत्ता --0 चउदह-रयणई जासु 'छक्खंड वसुंधरि भुजइ । अजुण-रिद्धि णिएवि चक्कवइ-वि दुक्कर पुज्जइ ।। [१२] पंचालहं कुरुवहं जायवाह पडिवत्ति जहारुह करेवि ताहं पट्टविउ असेसु णरिंद-चक्कु एक्कल्लउ पर गोविंदु थक्कु । सह पत्थे पट्टणे कणयपत्थे परिओसु जाउ णहे अमर-सत्थे तहि अवसरे जहिं णेरवर मुरारि सई आइय विज्जाहरि कुमारि ४ णामेण णंद वहु-साहणेण रह-तुरय-दुरय-णर-वाहणेण वहु-कोसे वहु-परिरक्वणेण धण-कणंय-समिरे परियणेण सोहग्गे रूवे जोवणेण लायण्णे लढि-लडहत्तण कुल-सीले विणएं णिय-गुणेण संपण्ण कण्ण स वि अजुणेण ८ धत्ता परिणिय जाउ विवाहु जय-मंगल-तूर-णिघोसें । रज्जु सई भुजंतु थिउ सव्वसाइ परिओसें ॥ ९ "इय रिट्ठणेमिचरिए धवलासियसयंभुवकए .. , वात्रीसमा सग्गो ॥ २२ । . । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001427
Book TitleRitthnemichariyam Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages220
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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