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बावीसमो संधि
धत्ता जहिं पंच-वि तहिं धम्मु जहिं पंच-वि तहिं णारायणु जहिं पंच-वि तहि सुक्खु : पर को-वि ण दुक्खहं भायणु ॥ ९
तो दुद्दम-दणु-विणिवायणेण अप्पाहिउ णरु णारायणेण गउ स-रहसु गिरिवरु, उज्जयतु जो पुण्णु पवित्तु अणाइवतु .. जो अच्छइ अणुदिणु पझरंतु णई रिसि णिय-कम्मई णिज्जरंतु जो सयलहं सुह-संपत्ति-हेउ . जो दुरिय-तर गिणि-तरण सेउ. ४ जो मोक्ख-महापुरि-पह-पहाणु जो भव-समुद्द-णिहणणहं थाणु ... जो तुग-णहंगण-कोडि-लागु जो सिहर-णिरुद्धाइच्च-मग्गु. जहिं दिवे दिवे जायव-जणहो जत्त जहि दिवे दिवे धमहो तणिय वत्त तं उज्जयतु गउ सव्वसाइ हरि दिट्ठ समुद्दे चंदु णाई... ८
.. धत्ता ... ..... .. णरु णारायणु णमि उज्जेंतु हलाउहु दुज्जउ । पंच-वि तित्थई ताई भणु आयह कवणु अपुज्जउ ॥ ९
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तहिं अवसरे देवइ-जेट्ठ धूय वसुएव-विमल-कुल-तिलय-भूय वाभच्छे भदिय-बहिणि दिढ णं हियए काम-कण्णिय पइट्ठ अवरोप्पर आयड्डिय-गुणाहं रणु जाउ सुहहा-अज्जुणाहं पच्छण सरेहि विधइ कुमारि वम्महेण समप्पिय जे चयारि पंचमउ वाणु किर लेइ जाम धणु पत्थहो हत्थहो पडिउ ताम सर-जालु णाई सित्थमउ गीदु ण पहाविउ पाविउ धरणि-वीदु विष्णवइ वर्णजउ पणउ होवि पई मुएवि धणुद्धरु महुँ ण को-वि धाणुक्किणि जोखी एह देव - मई जिणेवि ण सक्किय सावलेव
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