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रिट्ठणेमिचरिउ
तेण वि किउ पणिवाउ सुर-वरणाहे णाई
वत्ता संदणहासरेपिनु कतिबहे । जिण-पडिमहे अहिमुह होतियहे ।। १०
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तो जण्णसेण-धज्जुणेहिं ... कुरु-पंडव-पित्तिउ गमिउ, तेहिं ... संपाडिउ सयलु-वि संधि-कजु धयरठ्ठ तुम्ह गेहमउ अज्जु . णिय गयउरु विउरें पंडु-पुत्त , कय संधि परोप्परु ते. णिरुत्त , थिय अद्धोवद्धिए ते-वि ते-वि. पंचह-मि पंच-पुरवरई देवि पट्टविय णिरिक्वण-वज्जिएण गंगेय-दोण-किव लज्जिएण. ... . ठिउ राउ जुहिट्ठिलु इंदपत्थे तिलपत्थे भीमु णरु कणयपत्थे जम-जेट्ट परिट्ठिउ पाणिपत्थे विलसइ सहएउ सुवायपत्थे
घत्ता पंच-वि पुरहिं पइठ्ठाः थिय णियय-णियय-सीहासणे । अविचल अब्बावाहा परमेट्ठि णाई जिण-सासणे ।।
पडिवण्णउ कण्णउ जाउ जाउ परिणीयाणीघउ ताउ जाउ पंचह-मि पंच आयई पुराई पंचह-मि पंच अंतेउराई पंचह-मि पंच वर-वाहणाई.... पंचह-मि पंच णिय-साहणाई... पंचह-मि पंच वाइत्तयाई . पंचह-मि पंच बहु(रह)-चिंघयाई ४ पंचह-मि पंच दिव्वाउहाई असि-कोत-चाव-गय-जलरुहाइ... जहिं पंच-वि तहिं कुवलय-दलच्छि सयमेव परिट्ठिय राय-लच्छि जहिं पंच-वि तहिं धणु धण्णु अण्णु जहिं पंच-वि तहिं रयणई सुवण्णु जाहिं पंच-वि तर्हि संपय ण माइ जहिं पंच-वि तहिं धणयउ णिराइ(१)८
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