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बावीसमो संधि
[२]
ते वे-वि णिवारिय संतणेण हउं तुम्हहं कहमि हियत्तणेण वोल्लिज्जइ जिम अत्थाण-मग्गे पहरिज्जइ तेम ण लइए खग्गे कल्लए जे कण्ण दढ-धणु-गुणेण तुहुं काई ण णाविउ अज्जुणेण मद्दाहिउ भीमें भूमि णीउ कह कह-वि ण कड्दिउ तासु जीउ ४ तहिं काले वुत्त दूसासगेण जे जउहरे दड्ढ हुवासणेण किं तेहिं समाणु सणेहु अज्जु अच्छेविणु विहडइ एउ कज्जु तो वरि विहडिउ एवहिं जि ताय को दिवसेहिं जोहइ पंड्डु-जाय जं रुच्चइ तं विग्गहेण होउ दिज्जइ कयावि वइरिहिं ण ढोउ ८
घत्ता
पभणइ तो धयरट्ट को ते धरेवि समत्थु
जे अजय जियंतए माहवे अप्पुणु ढुक्कंते महाहवे ॥
[३]
जइ एवहिं दिण्णु वसुंधरद्ध तो जसु सविसेसु असेसु लठ्ठ अह पई विहडाविउ संधि-कन्जु तो तुम्हहं किर कहिं तणउं रज्जु दुज्जोहणु लोयण-वज्जिएण णिब्भच्छिउ किं गल-गज्जिएण सम्भावे वसुमइ-अद्भु देवि सुहु अच्छहु मच्छरु परिहरेवि पडिवण्णु वयणु तं गंदणेण पट्टविउ विउरु सहुं संदणेण पंडवेहि स-गग्गर किउ पणामु जं जउहर-डाहे ण णट्ट णामु ज हउ हिडिंबु परिभमिउ भिंगु किउ णाई महीहरु भग्ग-सिंगु जं कदि उ वग-रक्खसहो जीउ जे अंगयवद्धणु खयहो णीउ जं पाडिय राह विद्वत्त छाय तं तुम्ह पसाएं सव्वु ताय
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