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रिट्ठणेमिचरिउ
धत्ता
हय-गय-धणई स-धण्णइं रयण-सुवण्णई दिण्णइं जाव पहुत्ताई । वहु-वरइत्तु अलीढए कंचण-पीढए थिय ई सई भुंजताई ॥९
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इय रिट्ठणेमिचरिए धवलासियसयंभुवकए
एक्कवीसमो सगो ॥२१
वावीसमो संधि पंडव पयडीहूव थिउ कुरुउ मडप्फर-वज्जिउ । देमि वसुंधरि-अद्ध हक्कारउ विउरु विसज्जिउ ।।
[१] पंडवेहि पवइढिय-गउरवेहि __ आढत्तु मंतु तो कउरवेहिं धयरट्टे पभणिउ राह-पुत्तु महु तणएं किउ कम्मउं अजुत्त णय-विणय-दइव-संपत्ति जाहं किं जुज्जइ हुयवहु देवि ताहं परिरक्खिय-पुण्ण-परिग्गहेण लज्जिज्जइ सज्जण-विग्गहेण चंपाहिउ पभणइ कवण लज्ज लहु करहु महा-करि सारि-सज्ज ताडहु रण-भेरि महा-रउद्द उच्छल्लहु जुय-खए जिव समुद्द सहुं भीमसेण-जमलज्जुणेहिं स-सिहंङि-दुमय-धज्जुणेहिं समरंगणे हम्मइ धम्म-पुत्त जइ सम्मउ तो इमु करेवि जुत्तु
घत्ता पभणइ सउणिय-मामु चिंतवइ कण्णु पय-चंगउं लइयए पंडव-णामें महु झत्ति पलिप्पइ अंगउं ॥
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