SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एकवीसमो संधि धत्ता . दभ-पूल-पत्थरणह, अजिणावरणह उत्तम-चरण-णिवण्णाह । कहर असंभव-चरिउ रण-रस-भरियउ ताय ण हांति अ-धण्णाहं ।।१० [१८] जं वंभण-पक्खु विसेसियउ दुमएण पुरोहिउ पेसियउ सो पंडवराएं पुज्जियउ हक्कारउ ताव विसज्जियउ सहु तेण पंच रह पट्टविय तहि एक्कहि जमल परिट्ठविय अण्णेकहिं दोवइ कांति थिय अवरेहिं तिहिं तिण्णि समाहिय ४ संचल्लई सत्तई पुरवरहो गोयावरि मुहई-व सायरहो पेक्खंतह रह-तिय-चच्चरई ... धण-धण्ण-सुवण्ण उहवरइ.(.) .. . ता भीमहा दिट्टि विगय गयह अज्जुणहा सत्राणहं धणु-लयह णउलहो पजलंत-कांत. णिवहे सह एवहो असिवरे दुव्विसहे . घत्ता दोमइ कोंति सं-णेउरे थिय अंतेउरे इयर महासणे पवर-गर । . उवविसणेहि उवविट्टा दुमएं दिट्टा णाई अणंगे पंचसर ॥ २ भुंजाविय अण्णु अणण्ण-वसु सुकलत्तु दिण्ण-अण्णोण्ण-रसु. परिहाविय सिचयई मणहरई कमलासण-आउ-व दीहरई .. पहु पभणइ जेण चडिण्णु घणु सो करउ कण्ण-पाणिग्गहणु. तं णिसुणेवि जण्णसेण-वयणु किउ पत्थे दोवइ-परिणयणु कुलु पुच्छिउ कहु एक्कोयरेण विहसेप्पिणु कहिउ विओयरेण जइ जाणहुं विक्कम-विणय-धण तो अम्हहुं पंडव पंच जण . सेयंसहो लग्गेवि पगुण-गुणु जाणहुं जि तुम्हि कुरु-वंस-गुणु तं णिसुणेवि दुमयहो जाय दिहि किय णिरुवम का-वि विवाह-विहि ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001427
Book TitleRitthnemichariyam Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages220
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy