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________________ रिट्टणेमिचरिउ गय दोवइ. पासु. महत्तरिहे णं जउण-महाणइ सुरसरिहे : सोहइ पणति कुति-पयह णं णलिणि मञ्झे विहिं पंकयहं । मत्थएं परिचुवेवि भणइ पिह भव गेहिणि रोहिणि ससिहे जिह . तहिं अवसरे आइय विण्णि जण णिय-णेहें हलहर-महुमहण... ४ जय-कारिय स-सिरि जुहिट्टिलु-वि भीमज्जुण-जमलेहिं हरि वलु-वि अवरोप्परु संभासणु करेवि गय णवर पडीवा णीसरेवि जिह को-वि ण जाणइ पिसुणयणु रवि ताम पढुक्किउ अथवणु चंदुग्गमे थिउ णहु तम-रहिउ घट्टज्जुणेण दुमयहो कहिउ ट धत्ता आए ताय सविसेसे दियवर-वेसे लोयवाल जिम्ब ओयरिय पंडु-पुत्त जिव जउहरे दीविय-अवसरे कहि-मि सुरंगए णीसरिय ॥ ९ पच्छण्णु हवि हउँ गयउ. तहि णिय जण्णसेण . दियवरेहि जहि अवरेक महत्तरि. सा पुहमि . , मंछुड्डु जणेरि सा पंचहं-मि पणिवाउ ताहे किउ दोवइए : चिरु णाई सुहद्द हे देवइए दामोयर-हलहर तहि जि थिय . विहिं जणेहिं तेहि जयकार किय ४ सामण्ण ण देसिय लद्ध-सिरि णं पंच परिट्ठिय मेरु-गिरि णिसिचरिय चयारि-वि परिभमिय पडिआगय अद्धो-अद्धि किय तहिं अदु एक्कु एकहा जणहो महु ससए समप्पिउ वंमणहो अवरेक्कु अद्ध जं उव्वरिउ .. तं अट्ठहि भायहि उवगरिउ ८ भिक्खारि-अग्गि-वहु-सासुयह अवरह-मि चउहुं पात्रासु यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001427
Book TitleRitthnemichariyam Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages220
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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