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साहारु ण वंध वइरि-बलु तो जाउहाण- जम-गोउरहो
एत राहेउ पुरंजयहो अंधार णहु करंतु सरेहि पत्येण वि पेसिय ताम सर हु छइउ महीयलु पूरियउ
घत्ता
अज्जुण-वाणेहि,
पगुण- फणिद-समाणेहिं सत्र होंति ते खत्था रणे असमत्था
कर-परिहथि पेक्खेवि णरहो एवड्डीवार परिक्खियउ किं सग्गहो सग्गाहिंउ चविउ किं दइवें दरिसिउ अप्पणउं किं माणुस वेसे आउ रवि रु भइ मज्झे हउं सोत्तियहं
तं णिसुणेवि अंगराउ भणइ जो विष्पह पाण- विणउ घरइ
रिमिचरिउ
णं हरि-वले घुसलिउ उवहि-जलु + माहिउ भिडिउ विओयरहो चंपाहिउ भिडिउ घणंजयहो
णं. वासारत पओहरेहिं ... किय कण्णहो जाम गिरत्थ कर दुज्जोहण - हियउ विसूरियड
तो जउहरे दिण्ण हुवासणेण मदाहिउ तुलिउ विओयरेण
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[ १३ ]
उप्पण्णु चोज्जु चंपेसरहो भणु वंमण कहिं धणु सिक्लियर किं णर- णिहेण धणुवेउ थिउ किं परसुरामु किं रहु-तगउ किं जउहरे अज्जुणु दइदु ण-वि णु कुलक्खर खत्तियहं
जाहि जाहि को आहणइ
वित्त सो हि हरइ
तुम्ह
कण्ण वाण किय णिप्पसर । जे काणणहं आण-कर
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[ १४ ]
स- हिडिव -वगासुर-णासणेण गोवद्रणु जिहु दामोयरेण
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घत्ता
एम भणेवि चंपावइ गउ जहि कुरुवइ थिउ मउलेपिणु लोयणई | अज्जुण- फलई होंतिं असेसई होंति दुलेसई कहो ण कण्ण-संकोयण ॥९
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