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रिट्ठणेमिचरिउ
तो णरवर-सयहं णियंताहं दियवरहं घरंत-धरंताहं णिय-मंचहो अज्जुगु ओयरिउ जयकारिउ मणे दोणायरिउ ति-पयाहिण देविणु लइउ घणु सु-कलत्त व गुणहरु पणय-तणु पंडव जियंति हरिसिउ विउरु णिय-सीसु सरंतउ रुवइ गुरु ।
'वत्ता पुंखहो गुण सारंतर थाणु रवं (यं)तउ धणु कड्ढेतु मुवंतु सर । णरु पणिहालिउ केण-वि तहिं एक्केण-वि राह पहुंती दिट्ट पर ।।९।।
[९] जं राह रसायलु णरेण णीय तं कुरु जलणाहय गिरि व थिय उत्तर-विराड किय कण्ह-मुह . सयल वि दूमिय-वयणंबुरुह रण-भर-घर-धीर-समुव्वहणु परितुट्ट स-जायउ महुमहणु जर-कंथ-करंक-विह्नसिएहिं आणंदु पणच्चिर देसिएहि घट्ट ग-वले तूर इं हयई सुर-कुसुमई पत्थहो सिरे-गयई पंचालिय देकवतहो जणहो सिरे माल चडाविय अज्जुणहो तहि अवसरे रिउ-भइ-मोहणेण पट्टविउ दूउ दुजोहणेण धज्जुण-दुमयहो पत्तियहो खत्तिय-मुय भुजङ् खत्तियहो
घत्ता देवि चण्णु वणु कंचगु धल्लहो भणु जइ ण जाइ तो णिवहो । होउ हंस-गइ-गामिणि रज्जहो सामिणि जणसेण महु पट्टवहो ॥ १
घट्टज्जुण-दुमय-सिहंडि जहिं संदेसर णिरवसेसु कहिउ आएसु दिण्णु णिय-किंकरहो ण सयंवरु सोहइ सोत्तियहं
दृज्जोहण-दूर पइट्ठ तहिं एडिवयणु ण कुरुव-राए सहिट उद्दालहु दोवइ दियवरह पर आयई कम्मई खत्तियहं
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