________________
६१
एक्कवीसमो संधि हिययावलि गाई जयदहहो . जणणि व वंदणिय पियामहहो दुहिय व दोणहो विउरहो किवहो वज्जासणि णं भूरीसत्रहो . : .. णं पगुण-गुणज्जुण-धणुह-लय परवइ असेस विधति गय .. स-सराएणु राहा-बेहु जहिं सुरगय-गइ दोबइ ढुक्क तहिं . ८
घत्ता जा जउहरे णासंतेहिं पंडुहे पुत्तेहिं थिय विहि-वसेण परम्मुहिय । सा वहि सुहु देती दीसइ एंती ' णावइ' सिय सवडम्मुहिय ॥९॥
धट्ठज्जुण पभगइ एत्तिएण मम सस परिणेमी (?णावमि) खत्तिएण जिह वणि-सुएण जिह दियवरेण सामण्णे अण्ण उ गरेण धणु एउ चडावेवि ओए. सर . जो जंतहो छिद्दे गमइ सर पाडेसइ राह णराहिवइ तहो कंचण-माल बाल धिवइ तं णिसुणवि दुम्मइ दुच्चरिउ दुजोहणु मंचहो ओयरिउ आढत्त चडावेवि तेण धणु दूसामिएण णं गो-गहणु ज सरासणु चडइ ण णवइ धणु दुकलुत्तु व अंति उथह्दु पुणु णासंघिउ कुरु-परमेसरेण पच्चेल्लिउ पाडिउ घणु(?)घरेण
घत्ता गउ दुज्जोहणु मंचहो णिय-तणु खंचहो कहइ कण्हु जउ-वंसियहं । णउ तुम्हहं णउ अण्णहं कुरुवइ-सेण्णहं दोबइ होसइ देसियहं ॥९॥
[८] णियमिय णिय-सुहि दामोयरेण तहिं अवसरे अवर धणुद्धरेण . जिह कुरुवइ तिह दूसासणु वि तिह दुम्मुरु दुम्मुहु दूसहु वि . तिह कण्णु किकण्णु जयद्दहु वि x x x ... तिह सउणि-सल्ल विससेणु तिह भूरीसव पमुहाणेय-विह. . . ४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org