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एकबीसमो संधि
जहिं चंदकंत-णिज्झर-जलइं जहिं इंदणील-भू-भंगुरइं उज्जल-पवाल-रत्ताहरई
पगलंति पणालिहिं णिम्मलई मुत्ताहल-माला-दंतुरई अवरोप्परु विहसंति व घरइं
सयल-रिद्धि-संपुण्णउं पइसरंति ते पंडव
घत्ता. सुट्ट रवण्णउं तं तेहउ दुमयहो णयरु । वर वेयंड न केरउ(.) कमल-सरु ॥१०॥
तो जण-मण-णयणाणंदयरु दीसइ पंडवेहि कुलाल-घरु णं दइ !) उप्पायण-भंजणउ णं सुकइ-कवु बहु-रंजणउं णं करि-कुलु घडुप्पायण(?) णं छण-वुइढणु बहु-भायणउं णं चक्कवइत्तणु चक्कहणु बहु-मंगलु णं विवाह-भवणु णं जाणवत्त भंडुमरिउ णं रणु विसाल-साल-सहिउ तहिं वंभण-वेस-कियाहरण भिक्खा-भोयण पलाल-सयण कप्पड-परिहाण रोक्क-रस जण्णोवीय-सोहिय उरस आवासिय भूसिय-णिय-गुणेहिं तव तणय-भीम-जमलज्जुणेहि
घत्ता दिट्ठ चक्क-परिपाले कोंति कुलाले पंचहिं पुत्तिहिं परियरिय । लोयपाल-परिवारी तिय-तणु-धारी णाई वसुंधरि अवयरिय ॥९॥
तहिं कोंति स-पुत्ती जाव थिय दुमएण ताम सामग्गि किय मायदिहिं पुवुत्तर दिसए कोसंतरि सुसुमार-विसए जहिं दोबइ होसइ पंडवह तहिं लक्वई मंचय-मंडवह घट्टःजुगेग उपाइय इं वर सयई सयंवरे आइयइं
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