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________________ वींसमो सांध घत्ता ईहाणयरु वसावियउ पुरवइ-पउर-परिस-पय-पालेहिं । कणय-मउड-कडि-सुत्तएहिं छ-वि पुञ्जियई सयं-भुव-डालेहिं ।।९।। इय रिडणेमिचरिए धवलझ्यासिय सयंभुवकए एकोनविंशोऽध्यायः ॥१९॥ [ वीसमो संधि] भीमप्पहु भीमासुरु जिणेवि दूरुच्छलिय महा-जसहो । जिह सुर-करि मत्त-महाकरिहे भिडिउ भीम वग-रक्वसहो ।।१ ४ तो भुवदंड-चंड वेयंड व पट्टणु एक्कचक्कु गय पंडव दिट्ट जिणालउ वंदिउ जिणवरु अजरामर-पुरवर-परमेसरु सई मंगलु जग-मंगल-गारउ तिहुवण-लग्गण-खंभु भडारउ जाइ-जरा-मरणत्तय-णासणु गुण-गण-मणि-णिहि-अग्खलिय-सासणु लक्षण-लक्ख-सुलक्विय-गत्तर छत्त-छाहि-वीशांमय-जग-त्तर सयलामल-केवल-तिलयंकिर भू-भूसणु भावलयालंकित दिश्व-वाणि सिय-चामर-वासणु तिहुवण-पहु वलग्ग सीहासणु केस-कंति-कसणीकय-दिम्मुहु वयण-पहोहामिय-अंभोरुहु घत्ता सो जिणवरु वंदिउ पंडवेहि कोतिए अच्चिय वे-वि पय। छ-वि ते-वि दिवायर-अत्थवणे घरु जिणयासहो तणउं गय ।।९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001427
Book TitleRitthnemichariyam Part 2
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages220
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size9 MB
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