________________
अट्ठमो संधि
लइय लच्छि कोत्थुहु उद्दालिउ एवहिं काई करेसइ आलिउ ।। एण भएण जलोह-रउ दिण्ण यत्ति णं हरिहो समुहे ॥१.
[१] तहिं हरि-वल थिय दम्भासणेण सुरु गउतमु इंदहो पेसणेण ... संपाइउ सरहसु गहिय-मुद्द वोल्लाविउ तेण महासमुद्द अहो सायर सुंदर सुरवरेण हउं पेसिउ पासु पुरंदरेण महुमहहो करेवउ पई णिवासु पंचास रहिउ जोयण-सहासु ४ . गउ गउतमु एम भणेवि जं जे. मणि-रयणई अग्घु लएवि तं जे । गत जलणिहि पासु जणदणास चाणूर-मल्ल-बल-महणासु लइ दिण्ण थत्ति करि पट्टणाई हउं सरिउ दु-वारह जोयणाई गड गइवइ एम भणेवि जाम पट्टविउ सुरिंदे धणउ ताम
-
पत्ता जाहि कुवेर करहि महु पेसणु फेडहि हरि-हलहर-दब्भासणु । करि पट्टणु वारवइ सु-णांमें बारह जोयणाई आयामें ॥ ९
। [२] वित्थारे पुणु णव-जोयणाई करि एकहिं पंच-वि पट्टणाइँ वासवियहिं किउ संविंदसेणु दाहिणियहिं महुरहिं उग्गसेणु पच्छिमियहि सउरि दसार-जेठु उत्तरेणावासिउ णद-गोठु वारवइ-मन्झे तहिं पउमणाहु अच्छउ स-बंधु परियण-सणाहु ४ हरि-भवणु करिज्जहि भुवण-सारु अट्टारह-भूमु सहास-वारु माहुछ दिवस पुरे धरिय ताम धणु धण्णु सुवण्णु बहुतु जाम
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org