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पंचमो संधि
[१] गंदइ गंदहो तणउं घरु जहिं हरि उपण्णउ वालु ।
पालइ पालणए ज्जि ठिउ गोठेंगणु गो-परिपालु ॥ कण्हहो णीसामग्गि-अवक्खए णि ण एइ रणंगण-कंखए अज्ज-वि पूयण काई चिरावइ अज्ज-वि माया-सयडु ण आवइ अज्ज-वि रिठ-कंठु ण बलिज्जइ अज्ज-वि गोवद्धणु ण धरिज्जइ अज्ज-वि अज्जुण-जुयलु ण भज्जइ अज्ज-वि केसि-तुरंगु ण गंज्जइ ४ अज्ज-वि जउण णाहि मंथिज्जइ अज्ज-वि कालिउ ण णस्थिज्जइ अज्ज-वि कमलय-पीढु ण हम्मद अज्ज-वि महुरा-णयरि ण गम्मइ अज्ज-वि सह सुणिज्जइ तूरहो अज्ज-वि तइय(१) चलण चाणूरहो 'अज्ज-वि केसहो रिद्धि मयंधहो अज्ज-वि गंदइ पुरि जरसंघहो -आयए कंखए वालु ण सोवइ जाणइ जणणि अ-कारणे रोवइ
घत्ता मेहरि अम्माहीरएण परियंदइ हल्लरु णाह । गोउले पई अवइण्णएण हां हूइय जे सणाह ॥
[२] को केहउ पर-चित्तई चोरइ हरि अलियउ जे णिरारिउ घोरइ णं खय-काले महण्णउ गज्जइ णं सुर-ताडिय दुंदुहि वज्जइ णं णव-पाउसेण-घणु गज्जइ णं केसरि-किसोरु ओरंजइ पोरण-सह मेइणि कंपइ णउ सामण्णु को-वि जणु जंपइ ४ भीय जसोय विउझणे कुप्पइ उट्टि वप्प किर केत्तिठ सुप्पइ कह-वि विउद्धृ णाहु हरिवंसहो ताम कहिज्जइ केण-वि कंसहो
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