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“पढमो संधि
[४] तं णिसुणेवि वयणु मुणि-मणहरु सुणि सेणिय आहासइ गणहरु सूर-वीर हरिवंस-पहाणा सउरी-महुरा-पुर-वर-राणा अंधकविहि जणिज्जइ एक्के' णरवइविट्ठि पुत्तु अण्णेक्के सूर-सुयहो तहो रज्जु करंतहो सउरी-पुरवरु परिपालतहो ४ सत्तावीसंजोयण-मुहियहे वासहो ससहो परासर-दुहियहे पुत्त सुहहहे दस उप्पण्णा णं दस लोयवाल अवइण्णा तेत्थु समुद्दविजउ पहिलारउ पुणु अखोहु रण-भर-धुर-धारउ थिमिय-पयाई (१) सायरुप्पज्जइ हिमगिरि अचलु विजउ(१) जाणिज्जइ ८ धारणु पूरणु सहुँ अहिचंदे पुणु वसुएउ जाउ आणंदे
ताहं सहोयरियाउ कोंति-महि बे कण्णउ । णं दस-धम्म-जुवाउ खंति-दयउ उप्पण्णउ ।।
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'णरवइविट्टिहे रज्जु करते महुरा-पुरवरु परिपालते वासहो तणिय वहिणि पउमाबइ परिणिय चंदें रोहिणि जावई -तहे णदणु दिणमणि-व समुग्गउ उग्गसेणु उग्गाह-मि उग्गठ पुणु महसेणु महारणे उज्जउ देवसेणु देवाह-मि दुज्जउ पुणु गंधारि णारि वलवंतहो मगहामंडलु परिपालतहो दुद्धर-समर-भरोड्डिय-खंधहो मिरुवम-रिद्धि जाय जरसंघहों मंड तिखंड वसुंधरि सिद्धी रयण-णिहाणबद्ध-समिद्धी जायव-पंडव-कुरुव-पहाणी रावण रिद्धिहे अणुहरमाणी
घत्ता तोम तिलोय-पईड मिलिय-णरामर-विदहो । सउरीपुरि उप्पण्णु केवल-णाण मुणिंदहो ॥
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