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तहिं अवसरे सरसइ धीरवइ इंद्रेण समपि वायरणु पिंगलेण छंद-पय- पत्थारु वाणेण समपिड घणघणउ सिरिहरिसें णिय- णिउणत्तणउं छड्डूणिय - दुवइ - धुवएहि जडिय जण - यणाणंद-जणेरियए पारंभिय पुणु हरिवंस - कह
पुच्छइ माग - णाहु थिउ जिण - सासणि केम
उ किट्टइ अब्ज - वि भंति मणे णारायणु णरहो सेव करइ धयरट्ठ- पंडु अवरे जणिय पंचाल पंडव पंच जहि दुच्चरि जे लोयहो मंडण सच्छंद-मरणु गंगेर जइ चावेण सरेण वि जइ अजर कण्णेण कण्णु जइ णीसरइ
कळसे ण होइ माधु जड़ - वि विरुद्धा सुछु
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करि कष्वु दिण्ण मई विमल मइ ४ रसु भरहे वासें वित्धरणु भम्मह - दंडिरहिं अलंकारु तं अक्खर - डंवरु अप्पणउ अवरेडि-मि कहिं कत्तण चउमुद्देण समप्पिय पद्धडिय आसीसए सब केरियए
स-समय पर समय-वियार-सह
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घन्ता
भव-जर - मरण- वियारा | कहि हरिवंसु भडारा ॥
हरिवंशपुराणु
घत्ता
कुरु गुरु-कलस- समुन्भकः । रुहिरु पिवंति ण बंधव ॥
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विषरेरठ सुम्बइ सन्व-जणे रहु खेडइ घोडा संवरइ कौति भन्सार पंच भणिय बोलेवरं सब्वु समन्तु तहि उ चितवंति जस - खंडणउं तो तेण काई किय काल - गइ तो दोणु काई रणे खयहो गउ तो कोंति वियंति किं ण मरइ ८
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