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________________ [36] गं सेवाल-वाल दक्खालइ फेणुप्परियणु णं तहि घोलइ गेरुअ-रत्तउ तोउत्तंवरु णं परिहइ चुय-कुसुमहिं कप्वुरु किण्णरि-थण-सिहरइं गं दावइ विम्भमेहिं णं संसउ पावइ फणि-मणि-किरणहि णं उज्जोयइ कमलच्छिहिं गं कण्हु पलोयइ भिसिणि-पत्त-थालेहि सुणिम्मल उच्चाइय णं जल-कण-तंदुल खलखलंति णं मंगलु घोसइ णं माहबहु पक्खु सा पोसइ णउ कस्सु वि सामण्णहु अण्णहु अक्से तूसइ जवण स-वण्णहु बिहिं भाएहिं थक्कउ तीरिणि-जलु णं धर-णारि-विहत्तउं कज्जलु घत्ता दरिसिउं ताइ तलु पेक्खिवि महुमहणु किं जाणहुँ णाहहुरत्ती मयणे गं सरि वि विगुत्ती (महापुराण, ८५-२) तब मंथरगति से बहती हुई कालिन्दी उनको दृग्गोचर हुई । मानों धरातल पर अवतीर्ण सरितारूपधारिणी तिमिरघन यामिनी । मानों कृष्ण को देहप्रभा की धारा । मानों अंजनगिरि की आभा । मानों धरातल पर खींची हुई कस्तूरी-रेखा। मानों गिरिरूपी गजेन्द्र की मदरेखा । मानों कंसराज की आयु-समाप्ति-रेखा । मानों धरातल पर अवस्थित मेघमाला । वृद्धा सो तरंगबहुल । बाला सी श्यामा और मुक्ताफलवती। वह शैवालबाल प्रदर्शित कर रही है। फेनका उत्तरीय फहरा रही है गेरुआ जलका, च्युत कुसुमों से कवुरित रक्तांपर पहने हुई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001426
Book TitleRitthnemichariyam Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages144
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size7 MB
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