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________________ (311 १५-४ -मणि-किरण-करालिय-महिहरेहि विसहर-सिर-सिहर-सिलायलेहिं णियवत्थई कियई समुज्जलई पिंजरियई जउण-महाजलई तहिं हाउ णोउ गं गिल्ल-गंडु पुणु तोडिउ कंचण-कमल-संडु विणिवद्धउ भारुप्परि विहाइ वोयड गोवद्धणु धरिउ णाई णीसरिउ जणदणु दणु-विमद्धि णं महणे समत्तए मंदरदि तडि भारु पडिच्छिउ हलहरेण णं विज्जु-पुंजु सिय-जलहरेण गो-दुहहं समप्पेवि आयरेण सद्भावे भायरु भायरेण । घत्ता वलएवं अहिमुहु एंतु हरि अवरुंडिउ तहिं समइ । सिय-पक्खें तामस पक्खु णाई पहंतरि पडि वइ ॥ ___ 'सर्प के शिरोमणियों को किरणों से पर्वत व्याप्त हो गए । उनसे कृष्ण के वस्त्र समुज्ज्वल हो गए और ययुना की जलराशि रक्तवर्ण । वहीं कृष्ण ने मद से आर्द्र गण्डवाले गजराज की नाई स्नान किया और कांचन कमल का जडा तोड लिया । शिर पर रखा हुआ पूला ऐसा भाता था मानों दूसरा गोवर्धन उठाया हो। शत्रु के मर्दन करने वाले जनार्दन बाहर निकले । मानों समुहमंथन की समाप्ति करके बाहर निकला हुआ मन्दराचल हो । किनारे पर हलधर ने कृष्ण से बोझ ले लिया। मानों श्वेत बादल ने विद्युत्पुंज अपना लिया। उसे ग्वालों को सौप उस समय बलदेव ने सम्मुख आते हुए अपने भाई कृष्ण का आलिंगन किया। मानों प्रतिपदा के दिन शुक्लपक्ष ने कृष्णपक्ष को मेटा हो ।' ____ संग्राम के वर्णनों में स्वयम्भू की कला पूर्ण रूप से प्रकटित होती है। 'हरिवंश' का युद्धकाण्ड तो साठ सन्धियों के विस्तार को भरकर फैला है। कृष्ण के बालचरित्र में भी युद्धवर्णन के कई अवसर स्वयम्भू को मिल जाते है। ६-१२ में मुष्टिक और चाणूर के साथ कृष्ण और बलभद्र के मल्ल. युद्ध के वर्णन के मध्य यपक के प्रयोग से चित्र में सादृश्यता सिद्ध हुई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001426
Book TitleRitthnemichariyam Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages144
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size7 MB
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