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________________ [27] के द्वार खुल गए । दीपक को धारण किए हुए वृषभ उनके आगे-आगे चलता था। उनके आते ही यमुनाजल दो भागों में विभक्त हो गया। हरि यशोदा को सौपे गये । उसकी पुत्री को बदले में लेकर हलधर और वसुदेव कृतार्थ हुए । गोपबालिका को लाकर उन्होंने कंस को दे दिया । मगर विन्ध्याचल का अधिप यक्ष उसको विन्ध्य में ले गया । जैसे गगन में बालचन्द्र का वर्धन होता है, वैसे गोष्ठ के प्राङ्गण में गोविन्द का संवर्धन होता रहा। जैसे कमलसर में स्वपक्ष-मण्डन, निर्दषण कोई राजहंस को वृद्धि हो वैसे हो हरिवंशमण्डन, कंसखण्डन हरि नन्द के घर पर वृद्धि पाते रहे। इसके बाद के कडवक में कृष्ण की उपस्थिति के कारण गोकुल की जो प्रत्येक विषय में श्रीवृद्धि हुई और मथुरा की श्रीहीनता हुई उसका निरूपण है। अनुप्रासयुक्त पंक्ति युगलों की आमने-सामने आती हुई पंक्तियों में गोकुल और मथुरा इन दोनों स्थानों की परस्परा विरुद्ध परिस्थितियाँ प्रथित करके यह निरूपण किया गया है। ___पांचवी सन्धि के प्रथम कडवक में बालकृष्ण को नींद नहीं आती है और वे अकारण रोते है, यह बात एक सुन्दर उत्प्रेक्षा द्वारा प्रस्तुत की गई है। कवि बताते है कि कृष्ण को इस चिता से नींद नहीं आती थी कि पूतना, शकटासुर, वमलाजुन, केशी, कालिय आदि को अपना पराक्रम दिखाने के लिए मुझे कब तक प्रतीक्षा करनी होगी। इसके बाद के कडवक में सोते हुए कृष्ण को 'घुरघुराहट' के प्रचण्ड नाद का वर्णन है। पांचवी सन्धि के शेष भाग में बालकृष्ण के पूतनावध से लेकर कमल लाने के लिए कालिन्दो के हूद में प्रवेश करने तक का विषय है। छठी सन्धि के आरम्भ के चार कडवक कालियमर्दन में लगाए गए. है। शेष भाग में कसवध और सत्यभोमाविवाह है। स्वयम्भू की प्रतिभा काव्यात्मक परिस्थितियों को पहिचानने के लए...। सतत जागरूक है। कालियमर्दन विषयक कडवकों से स्वयम्भू की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001426
Book TitleRitthnemichariyam Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages144
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size7 MB
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