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________________ [19] बलराम गोकुल गए और कृष्ण को अपने सही माता पिता. कुल आदि “घटनाओं से परिचित किया। इससे रुष्ट होकर कृष्ण, कंस का संहार करने को उत्सुक हो उठे। दोनों भाई मल्लवेश धारण करके मथुरा की और चले । मार्ग में कंस से अनुरक्त तोन असुरों ने क्रमशः नाग के, गधे के और अश्व के रूप में उनको रोकने आ प्रयास किया । कृष्ण ने तीनों का नाश कर दिया ।' मथुरा के नगरद्वार पर कृष्ण और बलराम जब आ पहुंचे तब इनके उपर कंस के आदेश से चम्पक और पादाभर नामक दो मदमत्त हाथी छोड़े गए । बलराम ने चम्पक को आर कृष्ण ने पादाभर को उनके दन्त उखाड़ कर मार डाला । नगर प्रवेश करके वे अखाड़े में आये । बलराम ने इशारे से कृष्ण को वसुदेव अन्य दाशार्ह कंस आदि की पहचान कराई। कंस ने चाणर और मुष्टिक इम दो प्रचण्ड मल्लों को कृष्ण के सामने भेजा। किन्तु कृष्ण में एक सहस्र सिंह का और वलराम में एक सहस्त्र हाथी का वल था । तो कृष्ण ने चाणूर को मसल कर मार डाला और बलराम ने मुष्टिक के प्राण मुष्टि प्रहार से हर लिए । इतने में स्वयं कंस तीक्ष्ण खड्ग लेकर कृष्ण के सामने आया । कृष्ण ने खडूग छीन लिया। कंस को पृथ्वी पर पटक दिया। उसे पैरों से पकडकर पत्थर पर पछाडकर मार डाला ।' १. विच. मे सर्पशय्या पर आरोहण और कालियमर्दन इन पराक्रमों को जय कृष्ण ग्यारह साल के थे तब करने की बात है । विच, के अनुसार कृष्ण की कसोटी के लिए ज्योतिषी के कहने पर कंस अरिष्ठ नामक वृषम को. केशी नामक अश्व को, एक खर को और एक मेष को कृष्ण की और भेजता है। इन सबको कृष्ण मार डालते हैं । ज्योतिषी ने कंस से कहा था कि जो इनकी मारेगा वही कालिय का मर्दन करेगा, मल्लों का नाश करेगा और कंस का मी धात करेगा। २. त्रिच. में 'पादाभर' के स्थान पर 'पद्मोत्तर' ऐसा नाम है। 3. त्रिच. के अनुसार प्रथम कंस कृष्ण और बलराम को मार डालने का अपने सैनिकों को आदेश देता है । तब कृष्ण कूदकर मंच पर पहंचते है और केशों से खींच पर कंस को पटकते है । बाद मे चरणप्रहार से उसका सिर कुचल कर उसको मण्टप के बाहर फेक देते है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001426
Book TitleRitthnemichariyam Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages144
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size7 MB
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