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एगारहमो संधि
[१३] विज्जाहर-णाहु एवं भणेवि णिय जीविउ तिण-समाणु गणेवि अवसेसु सेण्णु सण्णहेवि गउ जहिं दुम्महु वम्महु लद्ध-जउ ते भिडिय परोप्पर दुव्विसह गं गयणहो णिवडिय कूर गह णं उद्ध-सुंड सुर-मत्त-गय णं हरि दूरुज्झिय-मरण-भय णं सलिल-पगज्जिय पलय-घण णं फणि विप्फारिय-फार-फण पहरंति अणेएहिं आउहेहिं पिसुणेहिं व पर-विंधण-मुहेहि विहि एक्कु-वि जिजजइ जिणइ ण-वि जम-धणय-पुरंदर-सोम-रवि वोल्लंति परोप्परु गयणे थिय सुय-जणणहुँ अविणय-थत्ति किय
घत्ता ताम पराइड देव-रिसि मं वे-वि अ-कारणे जुज्झहो । करेवि परोप्परु गोत्त-खउ सा कवण थत्ति जहिं सुल्झहो ॥
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[१४] विणिवारिय विण्णि-वि णारएण णं धरिय मेह अंगारएण मघ-रोहिणि-उत्तर-पत्तएण तिह तावसेण ढुक्कंतरण ओसारिष संवर-कुसुमसर जुझंतहुं जगे जंपणउं पर सुय-जणणहुँ विग्गहु कवणु किर दुल्लंघण-लंघिय तवसि-गिर ४ थिय विण्णि-वि रणु उवसंघरेवि पुत्तत्तणु तायत्तणु करेवि पण्णन्ति-पहावें अतुल-वलु उट्ठविउ कालसंवरहो बलु ते भणइ महारिसि कित्तिएण हउं एत्थु परायउ एत्तिएण एहु चरम-देहु सामण्णु ण-वि मयरद्धउ हरि-कुल-गयण-रवि
घत्ता असुरे णिउ पई वडूढावियउ सीमंधर-सामें सिठ्ठउ । एहु सो गंदणु रुपिणिहे मई, कह-व किलेसें दिट्ठल ॥ ५
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