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स
हरिवंसपुषणु
[११]
अवरेक्के केण-वि कंपिरेण कंठ-खलियक्खर-जंपिरेण .. अक्खियउ कालुत्तर-संवरहो धय-धवल-छत्त-छइयंवरही परमेसर सेण्णु परज्जियउं ____ वइवस-पुर-वहेण विसज्जियर्ड तो राएं अमरिस-कुद्धएण सामंत विण्णि जस-लुद्धएण ते भूमिकंप-महिकंप भड स-सुहड स-तुरंग स-हत्थि-हड पट्टविय पधाइय भिडिय रणे णं पवण-हुयासण सुक्क-वणे जे वम्महु मारहुं भणेवि गय ते विज्जा-पाणए सयल हय
घत्ता
जिणेवि ति-वारउ वइरि-वलु अण्णहो-वि दिट्टि पुणु ढोइयउ । जमु तिहि कवलेहिं धाउण-वि णं कवलु चउत्थउ जोइयउ ॥
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[१२] पडिवत्त कालसंवरहो गय सामिय असेस सामंत हय एवहिं विहिं कज्जहुँ एक्कु करे जिव कहि-मि णासु जिव भिडु समरे वल सयलु कुमार णिविठ पेयाहिव-पंथे पट्टविउ तं णिसुणेवि परवइ गीढ-भउ तहे कंचणमालहे पासु गउ ढोयहि पण्णत्ति दव-त्ति महु । वावरमि जेण अरिएण सहुं. पच्चुत्तर दिण्णु कयडु करेवि विज्जाहर-णाह विज्ज हरेवि णिय मंउ तेण तुह णंदणेण आसंकिउ परवइ णिय-मणेण पुण्णक्खए पुण्ण-विवज्जियउ विज्जउ वि ण होति सहेज्जियउ ८
घत्ता अहवइ वणे णिवसंताहो केसरिहे कवण सयणिज्जा । छुडु धीरत्तणु सु-पुरिसहो भुव-दंड जे होंति सहेज्जा ॥ ९
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