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हरिवंसपुराणु सयंवरिय-लच्छियं जल-थल-सरुलच्छियं(१) समुद्धरिय-हियं धिषिय-दूर-सण्णाहयं कडंतरिय-देहयं जणिय-पाण-संदेहयं धरारिय-छत्तयं लुय-धयावली-छत्तयं गया अहिमुहागया पहर-संगया णिग्गया महाहिर-रंगिया वर-तुरंगमा रंगिया कया-वि रह रहा वहु-मणोरहाणोरहा हरि-प्पमुह विद्धया जउ-णराहिवा विद्धया १२
घत्ता रिजु-धम्म-लग्ग-गुण-कढिया मोक्ख-फलावसाण-पसरा । असुरुज्झिय-देह-पयत्तयणे तवसि व कण्हहो लग्ग सरा ॥ १३. .
[१५] तहिं अवसरे सारंग-विहत्थे दुद्दम-दाणव-दलण-समत्थे मुक्कु वियम्भाहिव-सुय-कंते सरवर-णियरु अणंतु अणंतें पच्छए जइ-वि ठविज्जइ अण्णेहिं को गुणवंतु ण लग्गइ कण्णेहि जइ-वि मणोहरु पाणहरुच्चई मुट्ठिहे जो ण माइ सो मुच्चइ ४ छडिय-सवण-धम्मु गुण-लंघणु णिवसइ वासु वासि किर मम्गणु धणु कड्ढियउ सव्वु आकंदइ गुण-णमणेण कवणु णउ गंदइ वंकत्तणु गुणेण पर छज्जइ वे-कोडीसरु को णउ गज्जइ पीडिज्जंतु मुट्ठि कु ण मुवइ कढिज्जते जीवे कु ण रुवइ ८
घत्ता
सर-धोरणि वइरि-विसज्जिय णं पासेहिं भमेवि सु-पुरिसहो
केसव-सर-पसराहिहय । असइ विलक्खीहोवि गय ॥ ९.
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