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नवमो संधि
तरुणि-सिहिण-अणुहारि-कुंभया जेण जंति विहुरे व कुंभया धवल-णिद्ध-णिहोस-दंतया जे कया-वि ण किणाविदंतिया महिहर-ठव बहुलद्ध-पक्खया कालिय-व्व बहुलद्ध-पक्खया . जलहर-व्व जल-पूरिया सया सायर-व्व परिपूरियासया ८
घत्ता तहिं लक्खहं पवर-तुरंगहं सहि-सहासई रहवरह ।। _ सिपालु-रुटिप रणेः विण्णि-वि भिडिय विहि-मि हरि-हलहरहं ।। ९
[९] तो रुपिणिहे वयणु थिउ कायरु दीसइ सेण्णु णाई रयणायरु अहो अहो देव-देव णारायण ह हयाम वहु-दुक्खहं भायण पई भत्तारु लहेवि जग-सारउ णवरि परिहिउ दइउ महारउ तुम्हई विण्णि अगंतउं पर-वलु। किं घुझे णिहइ सायर-जलु ४ भीय भीरु मंभीसिय कण्हे दिय सत्त ताल जस-तण्हें मुद्दा बज्ज सवल संचूरिय सीमंतिणिहे मणोरह पूरिय जाणेवि अतुल-पहाउ अणंतहो पाएहि पडिय कंत णिय- कंतहो । जइ-वि दुछु खलु अविणय-गारउ रणे रक्खिज्जहि भाइ महारउ ८
घत्ता तो वासुएव-वलएवेहिं अभउ दिण्णु असगाहिणिहे । तहिं अवसरे पुण्ण-पहावेण पत्त विण्णि णिय-वाहिणिहे ।। ९
जायव-सेण्णु असेसु पराइउ लइयई पहरणाई रह वाहिय दिण्णई तुरई कलयलु घोसिउ ताव दमिय दुहम-दणु-विदे
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सरहसु दिण्णु परोप्परु साइउ ण्हविय तुरंग गइंद पसाहिय णारउ सहुँ सुरेहिं परिओसिउ पूरिउ पंचयण्णु गोविंदे
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पजा-५
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