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________________ ३०५ धर्मपरीक्षा-१८ अर्ककोतिरभूत् पुत्रो भरतस्य रथाङ्गिनः। सोमो बाहुबलेस्ताभ्यां वंशौ सोमार्कसंज्ञको ॥६७ रुष्टः श्रीवीरनाथस्य तपस्वी मौङ्गलायनः। शिष्यः श्रीपार्श्वनाथस्य विवधे बुद्धदर्शनम् ॥६८ शुद्धोदनसुतं बुद्धं परमात्मानमब्रवीत्। प्राणिनः कुर्वते किं न कोपर्वरिपराजिताः ॥६९ षण्मासानवसद् विष्णोर्बलभद्रः कलेवरम् । यतस्ततो भुवि ख्यातं कङ्कालमभवद् व्रतम् ॥७० कियन्तस्तव कथ्यन्ते मिथ्यादर्शनतिभिः ।। नीचैः पाखण्डभेदा ये विहिता गणनातिगाः ॥७१ पाखण्डाः समये तुर्ये बीजरूपेण ये स्थिताः। प्ररुह्य विस्तरं प्राप्ताः कलिकालावनाविमे ॥७२ ६९) १. अब्रुवन् । ७२) १. पञ्चमसमयभुवि । चक्रवर्ती भरतके अर्ककीर्ति नामका और बाहुबलीके सोम नामका पुत्र हुआ था। इन दोनोंके निमित्तसे सोम और अर्क (सूर्य) नामके दो अन्य वंश भी पृथिवीपर प्रसिद्ध हुए ॥६७॥ भगवान पार्श्वनाथका जो मौङ्गिलायन नामका तपस्वी शिष्य था उसने महावीर स्वामीके ऊपर क्रोधित होकर बुद्धदर्शनकी-बौद्ध मतकी-रचना की ॥६८।। उसने शुद्धोदन राजाके पुत्र बुद्धको परमात्मा घोषित किया । ठीक है-क्रोधरूप शत्रुके वशीभूत हुए प्राणी क्या नहीं करते हैं-वे सब कुछ अकार्य कर सकते हैं ॥६९॥ बलभद्रने चूँकि कृष्णके निर्जीव शरीरको छह मास तक धारण किया था इसीलिए पृथ्वीपर 'कंकाल' व्रत प्रसिद्ध हो गया ॥७०।। हे मित्र ! मिथ्यादर्शनके वशीभूत होकर मनुष्योंने जिन असंख्यात पाखण्ड भेदोंकीविविध प्रकारके अयथार्थ मतोंकी-रचना की है उनमें से भला कितने मतोंकी प्ररूपणा तेरे लिए की जा सकती है ? असंख्यात होनेसे उन सबकी प्ररूपणा नहीं की जा सकती है ।।७१।। ये जो पाखण्ड मत चतुर्थ कालमें बीजके स्वरूपमें स्थित थे वे अब इस कलिकालस्वरूप पंचम काल में अंकुरित होकर विस्तारको प्राप्त हुए हैं ॥७२॥ ६९) अ बत्मानमकल्पयन् । ६७) अरभून्मिश्रो; अ ब क इ संज्ञिको। ६८) अ इ मौण्डिलायनः । ७०) अ नावहेद्विष्णो । ७१) अ इ नरैः for नीचैः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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