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________________ ३०६ अमितगतिविरचिता विरागः केवलालोकविलोकितजगत्त्रयः । परमेष्ठी जिनो देवः सर्वगीर्वाणवन्दितः ॥७३ यत्र निर्वाणसंसारौ निगद्यते सकारणौ। सर्वबाधकनिर्मुक्त आगमो ऽसौ बुधस्तुतः ॥७४ आर्जवं मार्दवं सत्यं त्यागः शौचं क्षमा तपः। ब्रह्मचर्यमसंगत्वं संयमो दशधा वृषः ॥७५ त्यक्तबाह्यान्तरग्रन्थो निःकषायो जितेन्द्रियः । परीषहसहः साधुर्जातरूपधरो मतः ॥७६ निर्वाणनगरद्वारं संसारदहनोदकम् । एतच्चतुष्टयं ज्ञेयं सर्वदा सिद्धिहेतवे ॥७७ सम्यक्त्वज्ञानचारित्रतपोमाणिक्यदायकम् । चतुष्टयमिदं हित्वा नापरं मुक्तिकारणम् ॥७८ ७३) १. स देवः। ७४) १. बुधस्मृतः। ७५) १. ऋजुत्वम् । जो रागादि दोषोंसे रहित होकर केवलज्ञानरूप प्रकाशके द्वारा तीनों लोकोंको देख चुका है, उच्च पदमें अवस्थित है, कर्म-शत्रुओंका विजेता है तथा सब ही देव जिसकी वन्दना किया करते हैं; वही यथार्थ देव हो सकता है ॥७३॥ जिसमें कारणनिर्देशपूर्वक मोक्ष और संसारकी प्ररूपणा की जाती है तथा जो सब बाधाओंसे-पूर्वापरविरोधादि दोषोंसे-रहित होता है वह यथार्थ आगम माना जाता है ।।७४॥ सरलता, मृदुता, शौच, सत्य, त्याग, क्षमा, तप, ब्रह्मचर्य, अकिंचन्य और संयम; इस प्रकारसे धर्म दस प्रकारका माना गया है ।।७५।। ___ जो बाह्य और अभ्यन्तर दोनों प्रकारके परिग्रहका परित्याग कर चुका है, क्रोधादि कषायोंसे रहित है, इन्द्रियोंको वशमें रखनेवाला है, परीषहोंको सहन करता है, तथा स्वाभाविक दिगम्बर वेषका धारक है; वह साधु-यथार्थ गुरु-माना गया है ।।६।। इन चारोंको-यथार्थ देव, शास्त्र, धर्म व गुरुको---मोक्षरूप नगरके द्वारभूत तथा संसाररूप अग्निको शान्त करनेके लिए शीतल जल जैसे समझने चाहिए। वे ही चारों अभीष्ट पदकी प्राप्तिके लिए सदा सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और तपरूप रत्नोंको प्रदान करनेवाले हैं। उन चारोंको छोड़कर और दूसरा कोई भी मुक्तिका कारण नहीं है ||७७-७८॥ ७३) ब क ड इ विरागकेवला; अ°लोकावलोकित । ७४) क ड इ सर्वबाधक; अ क निर्मुक्तावागमो । ७५) अ शौचं त्यागः सत्यम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001425
Book TitleDharmapariksha
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages409
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & religion
File Size24 MB
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