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________________ 316 __ P. L. शुद्धपाठः P. L. शुद्धपाठः 209 21 भगवान्न पीतवान् 217 13 कृतं वा तेनैव दात्रा 209 27 कदाचिद् दौर्म' 217 23 उद्दिशन् प्रगणय्य 2105 मूसियारि वा मार्जारी 218 2 खलुशब्दो वाक्या" 210 17 प (व-प्र०)क्कसं ति चिर' 218 9 प्रमाणाङ्गारघूम° [प्र.] 210 32 शमादभिनिवृतः 218 16 विशोधिकोटि 2116 प्रहाणत्वा 218 27 कलोवादि त्ति पच्छी पिटकं वा 211 16 °वपि प्रयोजनक्रिया [प्र.] 218 27 सन्निधिः 211 23 विप्पहीण (विप्पमुक्क-प्र०)स्स . 218 34 बोक्कसालियकुलाणि 211 33 सुप्रसि . 219 12 श्रेण्यादिः [प्र.] 211 35 कुश्रुतिसरि 219 21 चेित 211 36 रणोत्थापित 220 15 यथैष साधुः शय्यायाः संस्कारे विधातव्ये 211 36 वेलाविलं [प्र०] खलु भगवया मीसज्जाए त्ति 211 39 प्रत्यर्थमालम्ब' 220 29 तं चेगाणिो 211 41-7 टीका परिसमाप्तेति । ग्रन्थप्रमाण ६६६१। 220 37 'मेकध्यम् 2128J सत्त (नव? )सहस्सा पंच य सयाई अहियाई 220 39 हुरत्था वा णेय णूणाई। गंथस्स य रइयाइं विहिणा 220 40 °स्तमेवाश्रयं [प्र.] कम्मक्खयट्ठाए ॥ अक्खरमत्ता बिंदू 2215 पवियारणा [प्र०] वयणपयं तह य गाह वित्तं च । जं एत्थ 221 6 तां चैककः कश्चि ण मे लिहियं तं समयविऊहिं खमियव्वं ॥ 221 18 केवलं रजो कृतिः शीलाचार्यस्येति । - ['खम्भात' 221 20 तरेतरकुला. नगरे विद्यमानायां तालपत्रात्मिकायां प्रतौ]। 221 23 पिण्डादिदोषरहितं टीका परिसमाप्तेति । - ['खम्भात' 221 27) आइन्नोवमाणं नगरे विद्यमानायां तालपत्रात्मिकायां 221 31J प्रतौ तथा अन्यास्वपि प्रतिषु] पाठान्तरम् 221 42 °भिसंधार्य 213 10 आयारग्गेसु 2225 जुगुप्साउनेषणी 213 20 तत्र पञ्चमो' 222 19 परितापा(पाता? ) दिरक्षणा 26 समारंभ 222 25,26 संनिवयमा 214 15 सप्त सप्तकका 222 30 बृहद्धारो 214 17 कुक्कुटस्य 222 31 बृहद्धारं 214 18 °धिमासकस्वभावा 222 32-33 संस्तृतान् 214 31 वचन: [प्र०] 222 35 यथा षण्मासं [प्र.] 215 2 से य पाहच्चेत्यादि 223 3 प्रतिगृह्णीयात् 215 28 अणभिक्कंताभज्जियं 223 6 विधिप्रति 215 34 चतुर्ष भङ्गके - 223 22 तत्र भक्तार्थी 215 40 अणभिक्कंताभज्जिय 223 23 °राले 'से' तस्य 216 10 तथा तिलगोधूमादेः 223 32 लापकाः 217 5 अस्सिंपडियाए । 223 37 पुरा पजूहिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001423
Book TitleAcharangasutram Sutrakrutangsutram Cha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagaranandsuri, Anandsagarsuri, Jambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1978
Total Pages764
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, agam_acharang, & agam_sutrakritang
File Size26 MB
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