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६० : महावीर : सिद्धान्त और उपदेश
ओर से पूर्ण विश्वास पैदा करे। जब तक मनुष्य अपने पार्ववर्ती समाज में अपनेपन का भाव पैदा न करेगा अर्थात जब तक दूसरे लोग उसको अपना आदमी न समझेगे और वह भी दूसरों को अपना आदमी न समझेगा, तबतक समाज का कल्याण नहीं हो सकता। एक बार ही नहीं, हजार बार कहा जा सकता है कि नहीं हो सकता । एक - दूसरे का आपस में अविश्वास ही तो आज तबाही का कारण बना हुआ है। ० संसार में जो चारों ओर दुःख का हाहाकार है, वह प्रकृति की ओर से मिलने वाला तो मामूली - सा ही है। यदि अधिक गहराई से अन्तनिरीक्षण किया जाए तो प्रकृति, दुःख की अपेक्षा हमारे सुख में ही अधिक सहायक है। वास्तव में जो कुछ भी ऊपर का दुःख है, वह मनुष्य पर मनुष्य के द्वारा ही लादा हुआ है। यदि हर एक व्यक्ति अपनी ओर से दूसरों पर किए जाने वाले दुःखों के जाल को हटा ले, तो यह संसार आज ही नरक से स्वर्ग में बदल सकता है।
अमर आदर्श ० जैन-संस्कृति के महान् संस्कर्ता अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीर ने तो राष्ट्रों में परस्पर होने वाले युद्धों का हल भी अहिंसा के द्वारा ही बतलाया है।
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