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महावीर के सिद्धान्त : ५५ परिग्रह के मूल केन्द्र
० 'कनक और कान्ता' परिग्रह के मूल केन्द्र-बिन्दु हैं । मेरा धन, मेरा परिवार, मेरी सत्ता, मेरी शक्तियह भाषा, यह वाणी परिग्रह-वत्ति में से जन्म पाती है। बन्धन क्या है ? इस प्रश्त के उत्तर में भगवान् महावीर ने कहा-"परिग्रह और आरम्भ ।' आरम्भ का, हिंसा का जन्म भी परिग्रह से ही माना गया है। मनुष्य धन का उपार्जन एवं संरक्षण इसलिए करता है कि इससे उसकी रक्षा हो सकेगी। पर यह विचार ही मिथ्या है, भ्रान्त है। भगवान ने तो स्पष्ट कहा है"वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते।" धन कभी किसी प्रमादी की रक्षा नहीं कर सका है। सम्पत्ति और सत्ता का व्यामोह मनुष्य को भ्रान्त कर देता है। सम्पत्ति आसक्ति को और सत्ता अहंकार को जन्म दे कर, सुख की अपेक्षा दुःख की ही सृष्टि करती है। सुख का राजमार्ग . ० इच्छा और तृष्णा पर विजय पाने के लिए भगवान ने कहा- "इच्छाओं का परित्याग कर दो। यही सुख का राजमार्ग है । यदि इच्छाओं की सम्पूर्ण त्याग करने की क्षमता तुम अपने अन्दर नहीं पाते हो, तो इच्छाओं का परिमाण करो। यह भी सुख का एक अर्ध-विकसित मार्ग है।" संसार में भोग्य पदार्थ
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