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महावीर के उपदेश : १४५
साधक न तो जीवित रहने की इच्छा करे और न शीघ्र मरना ही चाहे । जीवन तथा मरण किसी में भी आशक्ति न रखे।
धीर पुरुष को अवश्य मरना है, और कायर पुरुष को भी अवश्य मरना है। जब मरण अनिवार्य है, फिर तो धीर पुरुष की तरह प्रशस्त मौत से मरना ही बेहतर है।
सच्चा साधक लाभ - अलाभ, सुख - दु:ख, निन्दा-प्रशंसा और मान - अपमान में सम रहता है।
यह जीवन असंस्कृत है, बुढ़ापा आने पर कोई भी इसकी रक्षा करने वाला नहीं है।
: १० : प्रमत्त को सब ओर से भय रहता है, अप्रमत्त को किसी ओर से भी भय नहीं है।
: ११ : सब स्थानों में, सब समय पाप, कषाय आदि से विरक्त रहना चाहिए।
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