________________ महावीर के उपदेश : 135 ब्रह्मचर्य धीर पुरुष ! भोगों की आशा तथा लालसा छोड़ दे ! तू इस काँटे को लेकर क्यों दु:खी हो रहा है ? काम-भोगों से शान्ति नहीं मिलती। देवताओं सहित समस्त संसार के दुःखों का मूल एकमात्र काम-भोगों की वासना ही है। काम-भोगों के प्रति वीतराग--निःस्पृह साधक शारीरिक तथा मानसिक सभी प्रकार के दुःखों से छूट जाता है। : 4 : अब्रह्मचर्य भयंकर प्रमाद का घर है और असेव्य है / इन्द्रियों का विषय ही वस्तुतः संसार है। जैसे कछुआ खतरे के समय अपने अंगों को अपने शरीर में सिकोड़ लेता है; उसी प्रकार ज्ञानी-जन भी विषयाभिमुख इन्द्रियों को आत्म - ज्ञान से सिकोड़ कर रखे। तपस्याओं में ब्रह्मचर्य सर्वोत्तम तप है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org