________________ महावीर के उपदेश : 133 अस्तेय जो गुरुजनों की आज्ञा लिए बिना भोजन करता है, वह अदत्तभोजी है अर्थात् एक प्रकार से चोरी का अन्न खाता है। : 2 : चोरी अपयशकारी अनार्य कर्म है। यह श्रेष्ठ जनों द्वारा सदैव निन्दनीय रहा है। जो असंविभागी है, असंग्रहरूचि है, अप्रमाण-भोजी है, वह अस्तेय-व्रत का सम्यक्-आराधक नहीं है। जो संविभागशील है, संग्रह और उपग्रह में कुशल है, वह अस्तेय प्रत का सम्यक् * आराधक है। जो संविभागी नहीं है अर्थात् प्राप्त सामग्री का साथियों में सम वितरण नहीं करता है, उसकी मुक्ति नहीं होती। दूसरे की कोई भी वस्तु हो, आज्ञा ले कर प्रहण करनौ चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org