________________ महावीर के उपदेश : 131 सत्य मानव ! सत्य को पहचान / जो मनीषी साधक सत्यमार्ग पर चलता है, वह मृत्यु को पार कर जाता है। सत्य ही भगवान है। अपने स्वार्थ के लिए अथवा दूसरों के लिए, क्रोध अथवा भय से - किसी प्रसंग पर दूसरों को पीड़ा पहुँचाने वाला असत्य वचन न तो स्वयं बोले, न दूसरों से बुलवाए / लोहे के कण्टक तीर तो थोड़ी देर तक ही दुःख देते हैं, और वे भी शरीर से बड़ी सरलता से निकाले जा सकते हैं / किन्तु, वाणी से कहे हुए तीक्ष्ण वचन के तीर वैर-विरोध की परम्परा को बढ़ा कर भय को उत्पन्न करते हैं, और उन कटुवचनों का जीवन-पर्यन्त हृदय से निकलना बड़ा ही कठिन है। सत्य ही लोक में सार-तत्त्व है। यह महासमुद्र से भी अधिक गम्भीर है। हितकारी सत्य ही बोलना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org